जिनके दिन की शुरुआत महाकाल के नाम से हो उनके लिए सभी दिन, नक्षत्र मंगलकारी – पं प्रदीप मिश्रा🙏महाकाल भक्त मंडल के द्वारा आयोजित शिवपुराण में कथा श्रवण कर कोरबावासी जीवन को बना रहे धन्य।

कोरबा, (राज्यभूमि)। पावन सावन माह एवं सावन माह के सभी सोमवार भगवान शिव को समर्पित अत्यंत फलदायी हैं। इस माह इस दिन श्रद्धाभाव के साथ शिव आराधना, बिल्व पत्र के साथ एक लोटा जल अर्पित करने से जीवन धन संपदा से परिपूर्ण हो जाता है, मनोवांक्षित फल की प्राप्ति होती है। लोग अमुक दिन शुभ अमुक दिन अशुभ की भ्रांति में उलझे रहते हैं पर शिवपुराण में कहा गया है कि जिस मुख पर महाकाल का नाम हो उसके लिए सारे दिन, सारे काल ,सारे नक्षत्र शुभ मंगलमय होंगे।उक्त बातें अंतराष्ट्रीय कथा वाचक सिहोर वाले पं प्रदीप मिश्रा ने महाकाल भक्त मंडल द्वारा आयोजित ऑनलाइन शिवपुराण कथा के तीसरे दिन सोमवार को आयोजित कथा प्रसंग के दौरान कही। आचार्य श्री मिश्रा ने सावन माह के महत्व महत्त्ता का श्रोताओं को बखान करते हुए बताया कि इस माह में भगवान शिव को अपने सुसराल में आदर सम्मान मिला था। शिव को वह ससुराल जहाँ उनका अनादर होता था वहाँ सास प्रसूति की अनन्य भक्ति, सम्मान मिलने की वजह से ही यह पूरा माह शिव को प्रिय है। इस वजह से महादेव इस माह में श्रद्धाभाव से भरी एक लोटा जल अर्पित करने वाले शिवभक्तों की मनोवांक्षित फल ,धन संपदा से परिपूर्ण करते हैं। जैसे उन्होंने अपने सासु मां प्रसूति की निस्वार्थ सेवा पर अपने ससुर नंदी के द्वारा शीश कटने के श्राप से श्रापित राजा दक्ष को नव शीश नवजीवन प्रदान करने का आशीष दिया। व्यासपीठासीन पं श्री मिश्रा ने श्रोताओं को सावन माह के सोमवार के महत्व का सुंदर बखान करते हुए बताया कि सावन माह के सोमवार को ही माता लक्ष्मी की निस्वार्थ सेवा से प्रसन्न भगवान शिव ने उन्हें अपने ही समान महा उपाधि प्रदान की थी। इसी दिन से मां लक्ष्मी को जगत में महालक्ष्मी की उपाधि मिली। आचार्य श्री मिश्रा ने श्रोताओं को आगे बताया कि सावन माह के सोमवार को भगवान शिव के चौखट में शांति,दिशा ,सफलता मिलती है। जिस तरह माता लक्ष्मी को हृदय में शांति ,कहाँ जाना है वो दिशा मिली और सफलता स्वरूप महालक्ष्मी की उपाधि मिली। सावन सोमवार को सच्ची भावना से महादेव को एक लोटा जलाभिषेक करने से शिवजी की कृपा से भक्तों के खाली पात्र में महालक्ष्मी (धन धान्य) भक्तों के साथ जाती हैं। इसलिए भक्तों को जलाभिषेक के उपरांत रास्ते मे कहीं भी किसी के भी यहाँ नहीं जाना चाहिए। अन्यथा महालक्ष्मी की कृपा वहाँ चली जाएगी। आचार्य श्री मिश्रा ने श्रोताओं को लक्ष्मी और महालक्ष्मी के बीच अंतर का वर्णन किया। लक्ष्मी मां आती हैं तो त्वरित चली जाती हैं तिजोरी में नहीं टिकतीं।वहीं विष्णु जी की आदेश शिव कृपा से आती हैं तो कभी छोंड़कर नहीं जातीं। शिव कृपा से ही पावन सावन माह में शिवपुराण कथा श्रवण करने का सौभाग्य मिलता है ,इसमें हमारी इच्छा नहीं चलती। श्री मिश्रा ने सावन माह में आडंबर करने वालों पर कटाक्ष किया। उन्होंने ऐसे लोगों को आइना दिखाते हुए बताया कि महादेव को आडंबर पसंद है न दिखावा। उनकी नजरों में निर्धन धनवान सभी भक्त समान हैं। आज के इंसान दिखावे की जिंदगी जी रहे हैं ,खाना ,पीना ,सोना जीना सब दिखावे की जिंदगी जी रहे हैं। ढंग का जीवन नहीं ढोंग की जिंदगी जी रहे हैं ,जिसमें अपनी अंतरात्मा खुद को संतुष्टि नहीं मिल रही।पं श्री मिश्रा ने श्रोताओं को बताया कि शिवालय जाओ तो दिखावे से दूर रहो। मेरी पूजा भजन को कौन देख रहा है कौन क्या कह रहा है इसकी परवाह मत करो। उन्होंने मीरा की निस्वार्थ अटूट सच्ची भक्ति का उदाहरण देते हुए बताया कि जैसे मीरा ने मंदिर में महान संगीतज्ञ तानसेन द्वारा उनके सुर की आलोचना करते हुए राग में गाएँ लिखा होने पर उसके आगे अनु लिख उसे अनुराग बना दिया। मीरा की इस सच्ची भक्ति की शक्ति से तानसेन की भी आंखे खुल गई ।इस तरह मीरा ने तानसेन समेत जगत को यह बताया कि जगत को रिझाने के लिए राग एवं भोलेनाथ को रिझाने के लिए अनुराग,अविरल भक्ति,एकाग्रता की जरूरत पड़ती है। आचार्य श्री मिश्रा ने श्रोताओं को बताया कि शिवालय में सदैव सेवा के लिए तत्पर रहना चाहिए । क्या करना है कभी नहीं पूछना चाहिए ।सच्ची श्रद्धा के साथ महादेव को अर्पित एक लोटा जल आपकी जीवन की सारी समस्याओं का हल कर सकता है। आचार्य श्री मिश्रा ने कहा कि जीवन में जब कामयाबी आती है तो ईर्ष्या ,अनजाने शत्रु लेकर आती है ,ऊंचे पदों पर पहुंचे कामयाब लोगों को देवों में सबसे बड़े महादेव की तरह उन आलोचनाओं ईष्या के कड़वे घूंट प्रसन्न होकर पीने का साहस रखना चाहिए।